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Sunday, November 15, 2009

sab ko chubhti

सब को चुभती रही मेरी आवारगी ,
मुझमें सबसे भली मेरी आवारगी !
रंग सारे सजाकर वीधाता ने तब ,
रफ्ता रफ्ता रची मेरी आवारगी !
वक्त ने यूँ तो मुझसे बहुत कुछ लीया ,
जाने क्यूँ छोड़ दी मेरी आवारगी !
ज़ुल्मतें ज़ुल्मतें हर तरफ़ ज़ुल्मतें ,
चांदनी चांदनी मेरी आवारगी !
ज़िन्दगी की डगर मैं जो कांटे चुभे ,
बन गई मखमली मेरी आवारगी !
हादसों ने कसर कोई छोड़ी नहीं ,
मेरी रहबर बनी मेरी आवारगी !
धूप में , धुंध में , तेज़ बरसात में ,
कब थमी , कब रुकी मेरी आवारगी !