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Sunday, August 25, 2013

बुलबुला है पानी का

उठा के पंख पे फिर आसमान उतरेगी
मिलूँगा तुझसे तो सारी थकान उतरेगी

सभी के दिल से उतर जायगा ये क़द तेरा
जब भी क़िरदार से तेरी ज़ुबान उतरेगी

ये जो शुहरत है मियाँ बुलबुला है पानी का
ज़रा-सी ठेस से ये सारी शान उतरेगी

चढ़ी है धूप तेरा इम्तिहान लेने को
थमा न तू तो ये सौ-सौ ढलान उतरेगी

तेरी तरक्की जो ऊपर है बादलों में कहीं
कभी तो हो के तुझपे मेहरबान उतरेगी

चिड़िया

निकली है आज छूने लो आसमान चिड़िया
भर लेगी मुट्ठियों में सारा जहान चिड़िया

हो घोंसले में चाहे निकले किसी सफ़र पे
देती है रोज़ कितने ही इम्तिहान चिड़िया

हर मोड़ पर शिकारी, हर सम्त हैं शिकार
गोया ज़रा संभलकर भरना उड़ान चिड़िया

बाज़ार डालता है दाने तरह-तरह के
रहना क़दम-क़दम पर तू सावधान चिड़िया

कितना भी उड़ो ऊँचा, फैलाओ पंख जितने
ऊँचाइयों पे रखना, धरती का ध्यान चिड़िया

नोंचे हैं पंख किसने, हर ओर सनसनी है
जो होश में आए तो खोले जु़बान चिड़िया