बड़ी मासूमियत से सादगी से बात करता है
मेरा किरदार जब भी ज़िन्दगी से बात करता है
बताया हे किसी ने जल्द ही ये सुख जाएगी
तभी से मन मेरा घंटो नदी से बात करता है
कभी जो तीरगी हमारे मन को घेर लेती है
तो उठ के होसला तब रौशनी से बात करता है
नसीहत देर तक देती है उसको माँ ज़माने की
कोई बच्चा कभी जो अज्नभी से बात करता है
मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूँ लेकिन
वोह मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है
शरारत देखती है शक्ल बचपन की उदासी से
ये बचपन जब कभी संजीदगी से बात करता है.