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Monday, June 14, 2010

badi masumiyat se

बड़ी मासूमियत से सादगी से बात करता है
मेरा किरदार जब भी ज़िन्दगी से बात करता है

बताया हे किसी ने जल्द ही ये सुख जाएगी
तभी से मन मेरा घंटो नदी से बात करता है

कभी जो तीरगी हमारे मन को घेर लेती है
तो उठ के होसला तब रौशनी से बात करता है

नसीहत देर तक देती है उसको माँ ज़माने की
कोई बच्चा कभी जो अज्नभी से बात करता है

मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूँ लेकिन
वोह मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है

शरारत देखती है शक्ल बचपन की उदासी से
ये बचपन जब कभी संजीदगी से बात करता है.

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