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Thursday, July 22, 2010

Kamai Umra Bhar ki

तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है.
तू पत्थर को भी छुए तो बाँसुरी का स्वर निकलता है.

कमाई उम्र भर की और क्या है, बस यही तो है.
मैं जिस दिल मैं भी देखूं वो ही मेरा घर निकलता है.

अलहदा है नहीं जाता मैं मंदिर मैं, न मस्जिद मैं.
मगर जिस दर पे झुक जाऊँ वो तेरा दर निकलता है.

ज़माना कोशिशें तो लाख करता है डराने की.
तुझे जब याद करता हूँ तो सारा डर निकलता है.

यहीं रहती हो तुम खुशबू हवाओं की बताती है.
यहाँ जिस जर्रे से मिलिए वही शायर निकलता है.

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